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Wednesday, April 28, 2010

प्यार करते है

चाहते जो हद से ज्यादा किसी को ,
वही तो सबसे ज्यादा तकरार करते है ,
करो न फिकर अगर वो नाराज हो जाये ,
नाराज होते है वही ,
जो सबसे ज्यादा प्यार करते है |

आंसु


 होंठो की जुबां ये आंसु कहते है ,
चुप रहते है मगर फिर भी बहते है
इन आंसुओ की किस्मत तो देखो
ये उन के लिए बहते है ,
जो आँखों में ही रहते है |

बेचारा मंजनू....



कहानी है यह भी एक मजनू की
सुनाता हूं तुमको मै दास्तां जुनूं की,
संग-संग वो दोनो बचपन से खेले थे
साथ ही सजाते अरमानो के मेले थे,
जब से था उन दोनो ने होश संभाला
दिलों मे थी उनकी चाहत की ज्वाला,
परिणय़ मे बंधने की जब बारी आई
अपनो को अपने दिल की बात बताई,
मगर रिश्ता 'बाप' को यह मंजूर था !

लाख कोशिश पर भी उसने उसे पाया
और आखिर मे वही हुआ जो होता आया,
गुजरना पडा मजनू को फिर उस दौर से
हुई, लैला की शादी जबरन किसी और से,
इस तरह मजनू, लैला से सदा को दूर हुआ
पल मे सपनों का घरौंदा चकनाचूर हुआ,
फिर उसके अपने मरहम लगाने को आये
एक नया रिश्ता उसके लिये खुद ढूंढ लाये,
पर रिश्ता उसे 'अपने-आप' को मंजूर था !

फिर वक्त का पहिया कुछ और आगे बढा
गांव की इक बाला से प्यार परवान चढा,
हुए तैयार निभाने को दुनियां की रस्मे
खाई उन्होने संग जीने मरने की कसमें,
गांव की गलीयों मे शहनाई बज उठी थी
विवाह को घर-आंगन मे बेदी सज उठी थी,
फिर तभी बदकिस्मती का सैलाब बह गया
और वह मजनू बेचारा कुंवारा ही रह गया,
क्योंकि रिश्ता गांव की 'खाप' को मंजूर था !!

Sunday, April 25, 2010

नहीं होती.........


उनसे मिलकर भी खामोश रहे हम..........,
कि कल जाना.. हर चीज़ बयां नहीं होती...
लुभा गयी जो यारी हमे तन्हाइयों कि तो,
रातें उनकी भी अब वीरान नहीं होतीं.......
छुपती किससे है ये रोज की दुनियादारी,
उम्र सोलह की अब नादान नहीं होती........
चाएं कड़वी औ बातें मीठी थीं चच्चा की,
फुटपाथ पे अब वो दुकान नहीं होती.........
जगा सके लोगों को नींद से हर रोज,
सुबह की अब वो अजान नहीं होती.........


 

Saturday, April 24, 2010

साइबर आतंक

हाल ही में कनाडा के शोधकर्ताओं के एक समूह ने साइबर वार पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की। इसमें बताया गया था कि कैसे चीन के खुफिया साइबर नेटवर्क ने क्रमबद्ध तरीके से भारत के शीर्ष सुरक्षा और प्रतिरक्षा दस्तावेजों में सेंध लगाई। खुलासे ने भारतीय खुफिया तंत्र को हिलाकर रख दिया। यह स्वीकार कर पाना कतई संभव नहीं है कि इन हैकरों के पीछे चीन की सरकार का कोई हाथ नहीं था। यह नहीं माना जा सकता कि भारतीय खुफिया तंत्र के नेटवर्क में सेंध लगाकर खुफिया जानकारी हासिल करने वाले हैकर निजी तौर पर इस कृत्य में संलिप्त थे। खुफिया तंत्र से चुराई गई रक्षा व प्रतिरक्षा जानकारी का इस्तेमाल चीन अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी भारत के खिलाफ कर सकता है।

भारतीय रक्षा व प्रतिरक्षा नेटवर्क में सेंध लगाने वाले चीन के ये हैकर अनियमित बल जनमुक्ति सेना (पीएलए) से संबद्ध हैं। युद्ध के दौरान इसके पीछे रहते हुए या इससे मिलने वाली जानकारियों के आधार पर पारंपरिक जनमुक्ति सेना भारतीय सेना से मोर्चा लेगी। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि नियमित पीएलए उस वक्त मोर्चा संभालेगी जब साइबर योद्धा अपने दुश्मन की रक्षा प्रणाली को बुरी तरह नुकसान पहुंचा चुके होंगे।

साइबर वार और सीमापारीय आतंकवाद विषम युद्ध के दो प्रमुख मोर्चे हैं। दोनों ही हमलों में हर देश ऐसे हमलावरों को शत्रु देश के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करता है जो अनियमित हों या सरकार से किसी भी तरह जुड़े हुए न हों। इस तरह के हथियारों को मदद करने वाले देश किसी देश पर होने वाले हमले में उनकी मिलीभगत से अनजान बनने का नाटक करते हैं। उदाहरण के लिए पाकिस्तान हमेशा कहता रहा है कि वह लश्कर-ए-तैयबा का भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं करता है और चीन ने कहा कि भारतीय खुफिया विभाग की जानकारियां चुराने वाला चेंगदू स्थित साइबर रिंग उसका स्पाइंग आर्म नहीं है। दोनों ही मामलों में दुश्मन ने आड़ में रहकर युद्ध की विषम प्रकृति का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध किया। इंटरनेट युग में राष्ट्रीय सुरक्षा और संपन्नता को बनाए रखने के लिए साइबर स्पेस को सुरक्षित करना अहम हो गया है। इसमें इंटरनेट के जरिये वित्तीय प्रवाह और भारतीय सुरक्षा से जुड़े दस्तावेज व आंकड़ों के साथ ही दूसरे गोपनीय दस्तावेजों को इधर-उधर करते समय अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है। साइबर क्राइम से निपटने के उपायों को प्राथमिकता के तौर पर लागू किया जाना भी जरूरी है।

चीन की ओर से साइबर आतंक में तेजी से बढ़ रहा है। हाल के वर्षो में भारत के नेशनल इन्फोटिक्स सेंटर सिस्टम्स और विदेश मंत्रालय साइबर हमलों के शिकार हो चुके हैं। पिछले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने खुद खुलासा किया था कि उनके कार्यालय के कंप्यूटरों को चीन ने हैक किया था। इस तरह के हमलों का उद्देश्य पड़ताल व जासूसी में उलझाकर रखने के साथ ही भारतीय सत्ता को आतंकित करना था। भारत के विशेष कार्यालयों के कंप्यूटरों में घुसकर चीन खुफिया जानकारियों को आसानी से चुरा कर रणनीतिक फायदा उठा रहा है। समय-समय पर भारतीय साइबरस्पेस में घुसपैठ कर चीन दस्तावेजों को खंगालकर युद्ध के दौरान भारतीय नेटवर्क क्षमताओं का आकलन कर सकता है। साथ ही यह भी आकलन कर सकता है कि विषम हालात में किस तरह से भारत को कमजोर किया जाए।

भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जो चीन की साइबर घुसपैठ का शिकार है। जापान, ब्रिटेन और अमेरिकी अधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उनके सरकारी और सेना नेटवर्क में चीन के हैकरों ने सेंध लगाई है। ठीक उस समय जब चीन का साइबर हमला पूरे विश्व पर हो रहा है अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि किसी भी एक देश के कंप्यूटर नेटवर्क पर किया गया हमला पूरे विश्व पर हमला माना जा सकता है। क्लिंटन के बयान से शीत युद्ध की बू आती है। कहा जा सकता है कि उनके इन्फार्मेशन कर्टेन का मतलब आयरन कर्टेन से ही था। बाजार की ताकत को इस्तेमाल करने की रणनीति और राजनीतिक प्रणाली के लिए इंटरनेट के खुले मंच की नीति अब काम नहीं कर पा रही है। निश्चित तौर पर चीन जैसे-जैसे आर्थिक मोर्चे पर मजबूत हो रहा है, साइबरस्पेस सेंसरशिप पर उसका नियंत्रण और भी बढ़ता जा रहा है। चीन ने हजारों की तादाद में साइबर पुलिस कर्मियों को लगाया है जो गैरजरूरी वेबसाइटों को बंद करने, मोबाइल फोन के इस्तेमाल की निगरानी और इंटरनेट को लगातार इस्तेमाल करने वालों को ढूंढ़ने का काम करते हैं। मगर भारत जैसे देशों पर होने वाले साइबर हमले इस बात पर कतई निर्भर नहीं हैं कि चीन घरेलू स्तर पर क्या कर रहा है। ये हमले यह जानते हुए हो रहे हैं कि इनसे मिलने वाली जानकारी का विभिन्न मोर्चो पर होने वाला इस्तेमाल अनमोल होगा। इसके जरिये विभिन्न मोर्चो पर साइबर घुसपैठ के जरिये सही समय पर दुश्मन राष्ट्र को कमजोर कर चीन बड़ा फायदा उठा सकता है।

कनाडाई शोधकर्ताओं ने पहले चीन के सर्विलांस सिस्टम घोस्टनेट का खुलासा किया था। घोस्टनेट दूसरे देशों के कंप्यूटर नेटवर्क की पड़ताल करने के बाद दस्तावेजों को चीन में मौजूद डिजिटल स्टोरेज फैसिलिटी को स्थानांतरित कर सकता है। इन्हीं शोधकर्ताओं की नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत पर होने वाले साइबर हमले चेंगदू से किए गए थे। चेंगदू मे पीएलए के सिग्नल इंटेलीजेंस ब्यूरो का मुख्यालय है।

हले ही आतंकवाद ने लंबे समय से भारत को परेशान किया हुआ है। ऐसे में चीन की ओर से होने वाले इस नए हमले को कतई बरदास्त नहीं किया जाना चाहिए। चीन तकरीबन पिछले पांच साल से भारत पर साइबर हमले कर रहा है। एक साथ दो मोर्चो पर लड़ना भारत के लिए बहुत महंगा पड़ सकता है। भारत को कनाडा से जारी हुई रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए अपनी कमजोरियों को खत्म करना चाहिए और समय रहते सही जवाबी कार्रवाई के लिए तैयारी कर लेनी चाहिए। साथ ही दुश्मन के खेमे में घुसकर लड़ने की अपनी क्षमता का विकास करना चाहिए। कई बार आक्रामक होना रक्षात्मक होने से बेहतर साबित होता है।

Wednesday, April 21, 2010

ठीक नहीं



सब को अपना हाल सुनाना, ठीक नहीं
औरों के यूँ दर्द जगाना, ठीक नहीं

हम आँखों की भाषा भी पढ़ लेते हैं
हमको बच्चों सा फुसलाना, ठीक नहीं

ये चिंगारी दावानल बन सकती है
गर्म हवा में इसे उडाना, ठीक नहीं

बातों से जो मसले हल हो सकते हैं
उनके कारण बम बरसाना, ठीक नहीं

बच्चों को अपना बचपन तो जीने दो
यूँ बस्तों का बोझ बढ़ाना, ठीक नहीं

ज़िद पर अड़ने वालों को छोडो यारो
दीवारों से सर टकराना, ठीक नहीं

देने वाला घर बैठे भी देता है
दर दर हाथों को फैलाना, ठीक नहीं

Saturday, April 17, 2010

लगातार सिकुड़ता हुआ मानव मस्तिष्क


मानव का मस्तिष्क सिकुड़ता जा रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मनुष्य की दिमागी क्षमता में कमी हो रही है, बल्कि उसका मस्तिष्क सिकुड़ते कम्प्यूटर की तरह ज्यादा कुशल बनता जा रहा है।

फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने 1868 में पेरिस के दोर्दान में एक गुफा से पाँच पुराने कंकालों के बीच मिली बीस हजार साल पुरानी एक खोपड़ी की अनुकृति का अध्ययन करने के बाद बताया है कि यह वर्तमान मनुष्य की खोपड़ी से 20 प्रतिशत तक बड़ी है। यह खोपड़ी क्रो मैगनन मानव प्रजाति से संबंधित थी।

यह फ्रांस के राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय में रखी हुई है। वैज्ञानिक दल ने इसकी अनुकृति तैयार की है, जिसके बारे में उनका दावा है कि यह आधुनिक युग के प्रारंभिक मानव की खोपड़ी की अब तक की सर्वश्रेष्ठ अनुकृति है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि खोपड़ी के बड़े होने का यह मतलब नहीं है कि मनुष्य के पूर्वज ज्यादा बुद्धिमान थे। अध्ययनों से पता लगा है कि मस्तिष्क के आकार और आईक्यू (सामान्य बुद्धिमत्ता) के बीच बहुत मामूली संबंध होता है। वैज्ञानिकों के इस शोध से मानव विकास के एक महत्वपूर्ण सवाल पर रोशनी पड़ सकती है कि यदि मनुष्य का मस्तिष्क सिकुड़ता जा रहा है तो इसकी वजह क्या है। यह सवाल विशेषज्ञों को परेशान करता रहा है और इस पर उनके बीच मतभेद हैं।

समझा जाता है कि यह खोपड़ी किसी सुगठित अधेड़ व्यक्ति की है, जो लगभग छह फुट लंबा था। इस खोपड़ी के बारे में दुनिया भर के वैज्ञानिक पहले से ही जानते हैं, लेकिन जल्दी ही यह और प्रसिद्ध हो जाएगी, जब वॉशिंगटन में अमेरिका के राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय में इसकी अनुकृति को प्रदर्शित किया जाएगा।

पेरिस के कुइंज विंग्ट्स अस्पताल में खोपड़ी के आंतरिक भाग का स्कैन करके इस अनुकृति को तैयार किया गया था, ताकि मस्तिष्क से तंत्रिका कपाल (न्यूरोक्रैनियम) पर पड़े प्रभाव की तस्वीर ली जा सके।

इसके बाद फ्रांस के राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय के एंतिओन बाल्शॉ ने इसे थ्रीडी तस्वीर में परिवर्तित किया और फिर एक विशेषज्ञ सॉफ्टवेयर प्रोटोटाइपिंग फर्म ने इस खोपड़ी की अनुकृति तैयार की।

बाल्शॉ का कहना है कि यह अब तक की सबसे सुंदर अनुकृतियों में है। उन्होंने बताया कि क्रो मैग्नन खोपड़ी के एक प्रारंभिक आकलन से पुष्टि हुई है कि मानव का मस्तिष्क लाखों वर्षों के दौरान कुछ छोटा हुआ है। हालाँकि पहले यह माना जाता था कि मानव का मस्तिष्क बड़ा होता जा रहा है।

बाल्शा बताते हैं हालाँकि ऐसा लगता है कि भाषा और एकाग्रता से संबंधित मस्तिष्क का ढाँचा अनुमस्तिष्क (सेरिब्लेम) क्रो मैगनन के समय की तुलना में अधिक अनुपात ग्रहण कर रहा है। इससे पता लगता है कि मस्तिष्क के कुछ हिस्से दूसरे भागों की तुलना में अधिक सिकुड़ रहे हैं।

सिकुड़ते मस्तिष्क के रहस्य को स्पष्ट करने के लिए कई सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं। इनमें एक सिद्धांत यह है कि अपर पैलियोलिथेक युग में सर्दी से बचने और बाहरी गतिविधियों के दौरान जिंदा रहने के लिए बड़े सिर जरूरी थे।

दूसरा सिद्धांत यह है कि खरगोश, रेंडियर, लोमड़ी और घोड़े के माँस को चबाकर खाने के साथ खोपड़ी का विकास हुआ, लेकिन जैसे-जैसे भोजन करने में आसानी होती गई, मनुष्य की खोपड़ी का विकास रुक गया। कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि नवजात में मृत्यु दर अधिक होने के कारण वही जिंदा रह सकता था, जो ज्यादा से ज्यादा मजबूत हो। यह भी बड़े सिर होने का कारण हो सकता है।

Thursday, April 15, 2010

प्रियतम की प्रीत दिखाई देती॥

हर किसी के दिल के अन्दर॥
प्रियतम की कूक सुनाई देती॥
हर किसी के आँखों में ढल के॥
प्रियतम की प्रीत दिखाई देती॥
सुहाना लगता है सफर ॥
जब सांझ को साजन मिले॥
चेहरे से चेहरा को देखे॥
होठो में मुस्कान लिए॥
उनकी बोली से मोती निकले॥
मीठी बातें हंसे देती॥
हर किसी के आँखों में ढल के॥
प्रियतम की प्रीत दिखाई देती॥
झिर-झिर पवन हिलोरे॥
सावन रिम-झिम हस हस बोले॥
चिडिया चूचू गीत सुनावत॥
मन की बगिया आनंद लुटावत॥
अकेले मिल कर धीरे से हंस कर॥
मन की बातिया बाते देती॥
हर किसी के आँखों में ढल के॥
प्रियतम की प्रीत दिखाई देती॥

मगर कोई बहाना रख।।

अर्थ में भर अर्थ की अभिव्यंजना का अर्थ।
शक की सीमा के आगे भी निशाना रख।।

 हर कदम पर एक मुश्किल ज़िंदगी का नाम।
फिर से मिलने का मगर कोई बहाना रख।।

कभी कभी



यूँ हौसले बढ़े है हमारे कभी कभी,
जीते हजार बार तो हारे कभी कभी..
चलो एक बार फिर अपनी ख्वाहिशे दोहराएं,
होते है मेहरबान ये सितारे कभी कभी..
ख्यालों का भी अपना एक अलग मज़ा है,
लगते है खूबसूरत ये नज़ारे कभी कभी..
लहरों से उलझ के भी खुद पे रखना यकीन,
पास आते है खुद चल के ये किनारे कभी कभी


Wednesday, April 14, 2010

सच की लड़ाई



सवालों से लड़कर सँवरता गया हूँ।
विवादों से भिड़कर उभरता गया हूँ।
सुमन खुद ही खुशबू में तब्दील होकर
सरेवादियों में महकता गया हूँ।।

यूँ दुनिया से लड़ना कठिन काम यारो।
है खुद को बदलना हरएक शाम यारो।
मेरी जो भी फितरत ये दुनिया भी वैसी,
हो कोशिश कभी हों बदनाम यारो।।

नया सीख लेने की हरदम ललक है।
कहीं पर जमीं तो कहीं पर फलक है।
मगर दूसरों की तरफ है निगाहें,
जो दर्पण को देखा तो खुद की झलक है।।

कहूँ सच अगर तो वे मुँहजोर कहते।
अगर चुप रहूँ तो वे कमजोर कहते।
मगर जिन्दगी ने ही लड़ना सिखाया,
है सच की लड़ाई जिसे शोर कहते।।

काफ़िला



जिन दरख़्तों पर कोई पत्ता हरा मिलता नहीं
चहचहाते पंछियों का घोंसला मिलता नहीं

दर्द और ख़ुश्बू का नाता ज़िंदगी का मर्म है
जिसने कांटों को समझा, कुछ मज़ा मिलता नहीं

आदमी को दर्द से जो दूर ले जाए कहीं
आदमी को उम्रभर वो काफ़िला मिलता नहीं