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Monday, January 27, 2014

पर मुझे इन्तजार था, उसका |

रोजाना कि तरह, स्टेशन में खड़ा
घडी निहारता, भीड़ को देखता,
कुछ अनमना, कुछ बेचैन होता,
कभी अपनी हाथ कि घडी देखता,
फिर आने वालो से, समय पूछता
कभी पुराना अखबार, देखता, पढता
कभी बिस्कुट खाकर, समय काटता
हालत, एक सी, हर मुसाफिर की
सभी को इन्तजार था, ट्रैन का,
पर मुझे इन्तजार था, उसका |
                                              ढेर सारे सामान, का भार लिए
दौड़ते यात्री को, कुली कोसता
दो पत्र, पढ़कर, मैं कही खो जाता
एक प्यार और दूसरा शिकवा गिला
इसी सोच में, कौन बुरा कौन भला,
पुरानी यादो का, मन में भार लिए
हथेली की लकीरों, की धार लिए
सभी को इन्तजार था, ट्रैन का,
पर मुझे इन्तजार था, उसका |
जब भी बजती, आखिरी शीटी
धड़कने बढ़ जाती, मेरी जोर से
अहसास से कि ट्रैन आएगी
फिर कही, सफ़र अकेला न हो
मझदार में बैंठ, ढूढूं साहिल
पहुचने को अपनी मंजिल
सभी को इन्तजार था, ट्रैन का,
पर मुझे इन्तजार था, उसका |


Thursday, January 2, 2014

नई कहानी क्यूँ नहीं लिखते ?

पीछे दौड़ने को है, हजार खवाहिशे, हजार सपने
कुछ सपने पूरे नहीं होते, कुछ हो नहीं पाते
सब कुछ पाकर भी क्या करोगे ?
तुम अपनी जिंदगी में अपनी तरह क्यूँ नही रहते ?

महँगे मोबाइल,कार, फ्लैट,प्रॉपर्टी इक़ठठा करना
इन्क्रीमेंट, बोनस का हिसाब लगाते रहना
शेयरों के दाम की जाँच कब तक करोगे ?
जो इन सब से दूर ले जाए, वो नौकरी क्यूँ नहीं करते ?

ऐसे तो लाखों किताबें और हजारों फिल्में हैं दुनिया में,
लेकिन तुम्हारी अपनी जिंदगी क्या किसी फिल्म से कम है,
कभी थोड़ा वक़्त निकाल कर,
तुम अपनी कोई सच्ची कहानी क्यूँ नही कहते ?

फेसबुक में पोस्ट अपलोड करते हो
जिंदगी में हमेशा लोड लेकर रहते हो
सोमवार - वीकेंड के लिए बस 5 दिन और
ऐसे ऐसे चुटकले बार-बार कहते हो
हर साल वही पुरानी बाते, कहानिया है
           बची जिंदगी में नई कहानी क्यूँ नहीं लिखते ?